डाउन सिंड्रोम का मतलब क्या होता है | Down Syndrome Meaning in Hindi

 

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Down Syndrome in Hindi - डाउन सिंड्रोम एक ऐसा विकार है जिसमें बच्चा एक एक्स्ट्रा क्रोमोसोम के साथ पैदा होता है। भारत में पैदा होने वाले 1,000 बच्चों में 1 बच्चा डाउन सिंड्रोम से पीड़ित होता है। 

एक सामान्य बच्चे में 46 क्रोमोसोम होते हैं जिसमें 23 मां के और 23 पिता के क्रोमोसोम होते हैं। 

लेकिन डाउन सिंड्रोम होने पर यह क्रोमोसोम 46 की जगह 47 हो जाता है। इस एक्स्ट्रा क्रोमोसोम को क्रोमोसोम 21 कहते हैं।

क्रोमोसोम एक प्रकार के जीन होते हैं जो अनुवांशिक जानकारियां एक सेल से दूसरे सेल में ट्रांसफर करते हैं।

डाउन सिंड्रोम को ना तो ठीक किया जा सकता है और ना ही रोका जा सकता है लेकिन इसका पता गर्भ के दौरान लगाया जा सकता है।

बच्चों में डाउन सिंड्रोम के लक्षण - Symptoms of Down Syndrome in Hindi

वैसे तो डाउन सिंड्रोम चेहरे को देखकर बहुत ही आसानी से पहचाना जा सकता है लेकिन कुछ और लक्षण होते हैं जो डाउन सिंड्रोम को बताते हैं जैसे

1) तिरछी आंखें

2) चपटा चेहरा

3) जीभ का उभरा हुआ होना

4) छोटी गर्दन

5) छोटे हाथ पैर

6) मांशपेशियों का अनियमित होना

7) बोलने में दिक्कत

8) जिद और हठ करना

9) सीखने में अधिक समय लगना

10) छोटी या सपाट नाक

11) हथेली में केवल एक लकीर होना

12) भैंगापन

13) बहुत छोटा या बहुत बड़ा सिर

डाउन सिंड्रोम का पता कैसे लगाएं - Diagnosis of Down Syndrome in Hindi

डाउन सिंड्रोम का पता गर्भावस्था में बहुत ही आसानी से लग सकता है। डाउन सिंड्रोम का पता लगाने के लिए कुछ स्क्रीनिंग टेस्ट किए जाते हैं जैसे

1) ट्रिपल मार्कर और क्वाड्रूपल मार्कर ब्लड टेस्ट

2) न्यूकल ट्रांसलेंसी टेस्ट (Nuchal Translucency Test)

3) जेनेटिक अल्ट्रासाउंड

4) सेल फ्री डीएनए टेस्ट

5) कोर्डोसेनटेसिस (Cordocentesis)

6) कोरियोनिक विलस सैंपलिंग (Chorionic Villus Sampling)

7) एम्नियोसेंटेसिस (Amniocentesis)

यह सब टेस्ट तब किया जाता है जब बच्चा गर्भ में होता है। बच्चे के जन्म के बाद डाउन सिंड्रोम का पता लगाने के लिए Karyotype टेस्ट करवाया जाता है।

डाउन सिंड्रोम कितने प्रकार का होता है - Types of Down Syndrome in Hindi

डाउन सिंड्रोम तीन प्रकार का होता है

1) ट्राइसोमी-21 (Trisomy-21)

अधिकतर पैदा होने वाले बच्चे (95%) इस तरह के ट्राइसोमी 21 डाउन सिंड्रोम से पीड़ित होते हैं। हमारे शरीर की कोशिकाओं में क्रोमोसोम 21 की 2 कॉपियां  होती हैं लेकिन ट्राइसोमी 21 होने पर यह कॉपियां 2 की जगह 3 हो जाती हैं।

2) मोसाइसिज्म (Mosaicism)

इस प्रकार का डाउन सिंड्रोम 2% बच्चों को होता है। इसमें हमारी कोशिकाओं में क्रोमोसोम 21 की कुछ में 2 कॉपियां होती हैं और कुछ में 3 कॉपियां होती हैं।

3) ट्रांसलोकेशन (Translocation)

इस प्रकार का डाउन सिंड्रोम 3% बच्चों में होता है। यह डाउन सिंड्रोम तब होता है जब ट्राइसोमी 21 तो नॉर्मल होता है लेकिन यह दूसरे ट्राइसोमी 21 के साथ जुड़ा होता है। इस प्रकार का डाउन सिंड्रोम माता पिता से बच्चों को होता है।

डाउन सिंड्रोम का ईलाज - Treatment Down Syndrome in Hindi

डाउन सिंड्रोम का कोई ईलाज नहीं होता और मरीज को जीवन भर डाउन सिंड्रोम की जटिलताओं के साथ ही रहना होता है। 

शुरुआत में अगर बच्चों को मानसिक व शारीरिक गतिविधियों और ट्रीटमेंट में ले आया जाए तो इसकी जटिलताएं 20% तक कम हो जाती हैं लेकिन पूरी तरह से ठीक नहीं होतीं। 

यह बच्चों को मानसिक और शारीरिक तौर पर तोड़ देता है इसलिए एक अच्छा पारिवारिक माहौल बहुत ही महत्वपूर्ण होता है।

क्या मां की उम्र भी डाउन सिंड्रोम के लिए जिम्मेदार है - Causes of Down Syndrome

30 से अधिक उम्र में बच्चा होने पर उसे डाउन सिंड्रोम होने की संभावना बढ़ती जाती है। 

30 साल से अधिक उम्र में गर्भ धारण करने में आपके होने वाले बच्चे में डाउन सिंड्रोम होने की संभावना 1,000 में एक है। 

जबकि 35 साल में गर्भ धारण करने पर आपके होने वाले बच्चे को डाउन सिंड्रोम होने की संभावना 500 में एक है। 

40 की उम्र में गर्भ धारण करने पर आपके बच्चे में डाउन सिंड्रोम होने की संभावना 100 में से 1 है। 

उम्र बढ़ने के साथ गर्भवती होने पर डाउन सिंड्रोम की संभावना बढ़ती जाती है। इसका उम्र के साथ क्या संबंध है यह अभी तक ज्ञात नहीं है। 

इस तरह की संभावना पुरुषों के अधिक उम्र के मामलों में भी देखा गया है। 

बेहतर यही है की गर्भावस्था के दौरान डबल मार्कर, ट्रिपल मार्कर और क्वाड्रूपल मार्कर टेस्ट जरूर करवाएं ताकि किसी भी अनियमितता के पाए जाने पर आप अपने डॉक्टर से सलाह ले पाएं।

डाउन सिंड्रोम के साथ पैदा होने वाले बच्चों को कौन सी समस्याएं हो सकती हैं

डाउन सिंड्रोम के साथ पैदा होने वाले बच्चों के चेहरे काफी मिलते जुलते होते हैं और उन्हें उनके चेहरे से ही आसानी से पहचाना जा सकता है। 

इन बच्चों में उम्र बढ़ने के साथ साथ कुछ बीमारियां भी हो जाती हैं जैसे

1) बहरापन

2) कान में संक्रमण

3) आंख की बीमारी

4) हार्ट की बीमारी

5) सोते वक्त सांस रुक जाना (Sleep Apnea)

6) दमा

7) खून की कमी

8) ऑटिज्म

9) अल्जाइमर्स

10) समय से पहले बुढ़ापा

11) पेट की समस्याएं

12) फेफड़ों की बीमारी

 

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Lav Tripathi

Lav Tripathi is the co-founder of Bretlyzer Healthcare & www.capejasmine.org He is a full-time blogger, trader, and Online marketing expert for the last 12 years. His passion for blogging and content marketing helps people to grow their businesses.

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